प्रेरणादायक कहानियाँ
यह बात उन दिनों की है, जब हम हमीदिया अस्पताल के प्रत्येक वार्ड में जाकर पलंग पर लेटे मरीजों से व्यक्तिगत रूप से मिलते थे, उनका हालचाल पूछते थे, और संभव सहायता करते थे।
ऐसे ही एक दिन, मेरी नजर एक नवयुवक पर पड़ी, जो वार्ड के एक कोने में बेहोश पड़ा था। न उसके पास कोई तीमारदार था, न कोई पहचान। डॉक्टर से पूछने पर पता चला कि वह रेलवे पटरी के पास घायल अवस्था में मिला था और उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।
मैंने डॉक्टर से अनुरोध किया कि कृपया इस युवक को प्राथमिकता दें, इसका इलाज शुरू करें। इतने में युवक को थोड़ी होश आने लगी। उसने धीमे स्वर में कहा कि वह झांसी से है और उसका नाम "सोनू" है। यह कहकर वह फिर अचेत हो गया।
उसकी जेब टटोलने पर एक छोटी सी पर्ची मिली — उस पर लिखा था: "सोनू इलेक्ट्रिकल्स, झांसी"। मेरी तुरंत झांसी की एक घनिष्ठ सहेली को फोन किया, जो एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं, और उनसे "सोनू इलेक्ट्रिकल्स" के बारे में पता लगाने को कहा।
कुछ ही समय में उनका उत्तर आया — "सोनू इलेक्ट्रिकल्स" का बेटा सोनू कुछ दिन से लापता है और उसका परिवार बहुत परेशान है, उसे ढूंढ़ रहा है। थोड़ी ही देर में उस युवक के माता-पिता का फोन आया। वे बहुत भावुक थे, बोले:
“हमारे बेटे का ख्याल रखें, हम तुरंत आ रहे हैं।”
वे भोपाल आए, अपने बेटे को लेकर अच्छे इलाज के लिए ले गए। तब उन्होंने बताया कि सोनू का अपने पिता से झगड़ा हो गया था और वह बिना टिकट ट्रेन में चढ़ गया था। टीटीई ने उसे चलती ट्रेन से नीचे धकेल दिया था।
वक़्त बीत गया।
करीब एक साल बाद, एक रात 9 बजे, मेरे घर की घंटी बजी। नौकर ने आकर बताया कि तीन युवक झांसी से आए हैं — उनके हाथ में मिठाई का डिब्बा है।
मैं बाहर आई, पर मैं किसी को पहचान नहीं पाई।
तभी एक युवक आगे बढ़ा और बोला:
“मैडम, मैं सोनू हूं… झांसी से… आपने मुझे नई जिंदगी दी।”
इतना कहकर वह मेरे चरणों में झुक गया।
उसने कहा,
“मेरी शादी तय हो गई है। हमारे यहां सबसे पहला निमंत्रण भगवान गणेश को दिया जाता है, पर मैं वह निमंत्रण आपको देने आया हूं। आप ही मेरे लिए भगवान हैं।"
उस क्षण मेरी आंखें भी भर आईं। मैंने कहा,
“मैं आने की कोशिश करूंगी।”
हालांकि मैं विवाह में नहीं जा सकी, लेकिन वह पल मेरे जीवन का एक अमिट अनुभव बन गया। कई दिनों तक हम संपर्क में रहे।

रश्मि बाबा
अध्यक्ष, प्रेरणा सेवा ट्रस्ट
प्रेरणा सेवा ट्रस्ट: शांति और आत्मिक संतोष का स्थलकरीब 28 वर्ष पूर्व, जब प्रेरणा सेवा ट्रस्ट अपनी सेवा यात्रा की शुरुआत कर रहा था, तो मेरे पूज्य पापा जी, श्री दयाल सिंह सलूजा जी मुझे स्वयं वहाँ लेकर गए और बोले—
"हम यह निःस्वार्थ सेवा का कार्य शुरू करना चाहते हैं।"
उसी दिन मैंने मन ही मन एक वचन लिया—
जब तक ईश्वर इन हाथों और पैरों में शक्ति देगा, मैं इस पवित्र स्थान का साथ कभी नहीं छोड़ूंगी।इन वर्षों में कई भावुक क्षण आए, लेकिन एक अनुभव आज भी हृदय में गहराई से अंकित है।एक नन्हा बच्चा था—बहुत प्यारा, मासूम—हड्डियों के कैंसर से पीड़ित। डॉक्टरों ने उम्मीद छोड़ दी थी।
जब भी मैं अस्पताल वार्ड में जाती, उसका चेहरा खिल उठता और वह कहता—
"मेरी मम्मी जी आ गईं!"
वह मुझसे बहुत जुड़ गया था, और मैं भी उससे।
मैं उसके लिए घर पर उसका मनपसंद खाना बनाकर लाती और वह बहुत खुशी से खाता।
यह सिलसिला लगभग दो वर्षों तक चला।
फिर एक दिन वह नन्हा फरिश्ता इस दुनिया से चला गया।आज भी उसकी मां और बहन मुझसे मिलने आती हैं।
मेरे लिए यही सच्चे मानवता और प्रेम का स्वरूप है।ऐसे अनगिनत पल हैं जिन्हें शब्दों में पिरोना कठिन है।मैं आप सभी से विनम्र निवेदन करती हूँ—
आइए, इस पुनीत सेवा यात्रा में हमारे साथ जुड़िए।

पिंकी सहोता
सह-सचिव